कमरुनाग:- यहां पानी के नीचे दिखता है खजाना, नाग के डर से कोई चुराने का नहीं करते साहस

#कमरुनाग:- 

👉🏿हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से तकरीबन 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक ऐसी झील है जहां पानी के नीचे छिपा खजाना साफ नजर आता है। लेकिन नाग देवता के चलते आज तक इसे कोई छू भी नहीं सका है। जिसने भी इसे चोरी करने की कोशिश की उसके साथ कुछ ऐसा हो गया कि फिर किसी ने कभी ऐसी कोशिश नहीं की। मंडी जिले के कमराह नामक स्‍थान पर घने जंगल से घिरी पहाड़ी का नाम है कमरूनाग। पुरातत्‍व विज्ञानियों के अनुसार इस झील में नजर आने वाला खजाना महाभारत काल का है। इस झील के किनारे कमरूनाग देवता का भी मंदिर है। जहां जुलाई के महीने में सराहनाहुली मेले का आयोजन करके नाग देवता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।


👉🏿मान्‍यता है कि कमरूनाग झील में सोना-चांदी और रुपये-पैसे चढ़ाने की यह परंपरा सदियों पुरानी है। श्रद्धालु यहां अपनी मुरादें पूरी होने के बाद अपनी आस्‍था के अनुसार सोने-चांदी का चढ़ावा चढ़ाते हैं। बता दें कि समुद्रतल से नौ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस झील में अरबों का खजाना है। जो कि पानी से बिल्‍कुल साफ झलकता है। लेकिन सुरक्षा की बात की जाए तो इसके लिए किसी भी तरह की कोई भी सुरक्षा व्‍यवस्‍था नहीं की गई है। मान्‍यता है कि इसकी रखवाली खुद कमरूनाग देवता करते हैं।

👉🏿झील में पड़े खजाने की सुरक्षा स्‍वयं कमरूनाग देवता करते हैं। कहा जाता है कि एक बार एक आदमी ने झील से खजाने को चुराने का प्रयास किया। इसके लिए उसने झील के मुहाने पर छेद करके सारा पानी निकालने का प्रयास किया। कहा जाता है कि इस प्रयास में उसकी जान ही चली गई। इसके अलावा एक बार एक चोर ने झील से खजाने की चोरी का प्रयास किया। बाद में वह पकड़ा गया। कहा जाता है कि इस घटना के बाद उसकी आंखें पूर्ण रूप से खराब हो गईं। पौराणिक मान्‍यता यह भी है कि झील में पड़ा खजाना पांडवों की संपत्ति है। जिसे उन्‍होंने कमरूनाग देवता को समर्पित कर दिया था।


👉🏿#पौराणिकमान्‍यता👇

👉पौराणिक मान्‍यता के अनुसार, महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडव रत्‍नयक्ष (जिन्‍हें महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्‍ण ने अपनी रथ की पताका से टांग दिया था) को एक पिटारी में लेकर हिमालय की ओर लेकर जा रहे थे। जब वह नलसर पहुंचे तब उन्‍हें एक आवाज सुनाई दी। जिसने उनसे उस पिटारी को एकांत स्‍थान पर ले जाने का निवेदन किया। इसके बाद वह उसे कमरूघाटी लेकर गए। वहां एक भेड़पालक को देखकर रत्‍नयक्ष इतना प्रभावित हुआ कि उसने वहीं रुकने का निवेदन किया।

रत्‍नयक्ष के कमरूनाग में रुकने के पीछे यह कथा मिलती है कि वह उसी क्षेत्र में जन्‍मा था। उसने पांडवों और उस भेड़चालक को बताया कि त्रेतायुग में उसका जन्‍म इसी स्‍थान पर हुआ था। उसे जन्‍म देने वाली नारी नागों की पूजा करती थी। उसने उसके गर्भ से 9 पुत्रों के साथ जन्‍म लिया था। रत्‍नयक्ष ने बताया कि उनकी मां उन्‍हें एक पिटारे में रखती थीं। लेकिन एक दिन उनके घर आई एक अतिथ‍ि महिला के हाथ से यह पिटारा गिर गया और सभी सांप के बच्‍चे आग में गिर गए। लेकिन रत्‍नयक्ष अपनी जान बचाने के प्रयास में झील के किनारे छिप गए। बाद में उनकी माता ने उन्‍हें ढू़ढ़ निकाला और उनका नाम कमरूनाग रख दिया।

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

Previous Post Next Post